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भारत का संवैधानिक विकास भाग 2 :

भारत का संवैधानिक विकास भाग 2 : पिट्स इण्डिया एक्ट (1784) ◆ 1778 ई. के रेग्यूलेटिंग एक्ट में व्याप्त कमियों को दूर करने के लिए 1781 ई.में एक एक्ट को पारित किया गया, जिसे एक्ट ऑफ सेटलमेण्ट कहा गया। ◆ इसके बाद 1784 ई. में ब्रिटिश पार्लियामेण्ट ने कम्पनी के ऊपर अपने प्रभाव को और मजबूत करने के उद्देश्य से पिट्स इण्डिया एक्ट को पास किया। इसी एक्ट में पहली बार भारत में कम्पनी के अधीन क्षेत्र को ब्रिटिश आधिपत्य क्षेत्र कहा गया। ◆ इस एक्ट ने कम्पनी के व्यापारिक व वाणिज्यिक कार्यों को एक-दूसरे से अलग कर दिया। ◆ कम्पनी के व्यापारिक (वाणिज्यिक) मामलों को छोड़कर सभी सैनिक, असैनिक तथा राजस्व सम्बन्धी मामलों को एक छः: सदस्यीय नियन्त्रणबोर्ड के अधीन कर दिया गया। इस नियन्त्रण बोर्ड में ब्रिटेन का वित्तमन्त्री अर्थात्‌ चांसलर ऑफ एक्सचेकर, एक राज्य सचिव तथा सम्राट द्वारा नियुक्त चार प्रिवी काउन्सिल के सदस्य होते थे। ◆ इस अधिनियम के द्वारा द्रैध-शासन की शुरूआत हुई, एक कम्पनी के द्वारा तथा दूसरा संसदीय बोर्ड के द्वारा। यह व्यवस्था 1858 ई. तक विद्यमान रह...

भारत का संवैधानिक विकास भाग 1 :

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भारत का संवैधानिक विकास (1) ‘‘भारतीय संविधान के निर्माण की एक लम्बी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि रही है। भारतीय संविधान सभा द्वारा निर्मित भारतीय संविधान से अभिन्न रुप से जुड़े हुए अनेक ऐसे अधिनियम एवं चार्टर हैं, जिन्हें समय-समय पर ब्रिटिश संसद में पारित किया गया, जो हमारे संविधान की पृष्ठभूमि कहे जा सकते हैं।'' कंपनी के अधीन संवैधानिक विकास (1600-1858) ◆  इस अवधि में जितने भी अधिनियम पारित किए गए, वे मुख्यत: भारत में कम्पनी के व्यापार को अपने अनुकूल बनाने के उद्देश्य से पारित किए। गए थे। भारतीय संविधान के निर्माण की प्रक्रिया को समझने के लिए इनका विस्तृत अध्ययन आवश्यक है। राजलेख (1600) इस अधिनियम द्वारा ईस्ट इण्डिया कम्पनी को पूर्वी देशों से व्यापार करने का एकाधिकार प्रदान किया गया। कम्पनी के भारतीय शासन की समस्त शक्तियाँ गवर्नर और उसकी परिषद (जिसमें 24 सदस्य थे) को सौंप दी गई। ◆ इस परिषद् को (गवर्नर समेत) ऐसे नियमों-विधियों तथा अध्यादेशों को बनाने का अधिकार दिया गया, जिससे कम्पनी के प...