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Showing posts from March, 2020

होमरूल लीग और आंदोलन

होमरूल लीग और आंदोलन :  28 अप्रैल, 1916 को तिलक ने एवं 3 सितंबर, 1916 को एनी बेसेंट ने अपनी-अपनी होमरूल लीग की स्थापना की।  बेसेंट ने 'कॉमनवील' और 'न्यू इंडिया' तथा तिलक ने 'मराठा' और 'केसरी' के माध्यम से अपनी-अपनी लीग का प्रचार किया।  - तिलक द्वारा स्थापित होमरूल लीग के प्रथम अध्यक्ष जोसेफ बैपटिस्टा तथा सचिव एन.सी.केलकर थे। - एनी बेसेंट द्वारा स्थापित लीग के सचिव जॉर्ज अरुंडेल थे।  तिलक और एनी बेसेंट ने अपने अपने कार्यक्षेत्रों का बंटवारा भी कर दिया।  तिलक के लीग के जिम्मे कर्नाटक, महाराष्ट्र (बंबई को छोड़कर) मध्य प्रांत एवं बरार। देश के शेष हिस्से एनी बेसेंट की लीग के जिम्मे आए,   दोनों लीगों ने अपना विलय नहीं किया क्योंकि एनी बेसेंट के शब्दों में, "उनके (तिलक) कुछ समर्थक मुझे पसंद नहीं करते और मेरे कुछ समर्थक उन्हें नापसंद करते थे,  लेकिन मेरे और उनके बीच किसी तरह का कोई झगड़ा नहीं था।" होमरूल आंदोलन के दोनों नेताओं तिलक एवं एनी बेसेंट की निगाह में स्वराज का अर्थ करीब एक जैसा ही था ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत ...

सविनय अवज्ञा आंदोलन 1930 और महात्मा गांधी :

सविनय अवज्ञा आंदोलन 1930 और महात्मा गांधी  :  1929 में लाहौर कांग्रेस अधिवेशन में कांग्रेस कार्यकारिणी को सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करने का अधिकार दिया गया।  फरवरी, 1930 में साबरमती आश्रम में हुई कांग्रेस कार्यकारिणी की दूसरी बैठक में महात्मा गांधी को इस आंदोलन का नेतृत्व सौंपा गया।  महात्मा गांधी ने 12 मार्च, 1930 को अपना प्रसिद्ध 'दांडी मार्च' शुरू किया।   उन्होंने साबरमती आश्रम (अहमदाबाद) से 78 चुने हुए साथियों के साथ सत्याग्रह के लिए कूच किया। 24 दिनों की लंबी यात्रा के बाद उन्होंने 6 अप्रैल, 1930 को दांडी में सांकेतिक रूप से नमक कानून भंग किया और इस प्रकार नमक कानून तोड़कर उन्होंने औपचारिक रूप से सविनय अवज्ञा आंदोलन का शुभारंभ किया।  - सुभाष चंद्र बोस ने गांधीजी के इस अभियान की तुलना नेपोलियन के एल्वा से पेरिस की ओर किए जाने वाले अभियान से की थी।   एक अंग्रेजी समाचार संवाददाता ने खिल्ली उड़ाई और कहा कि "क्या सम्राट को एक केतली में पानी उबालने से हराया जा सकता है।" इसके उत्तर में गांधीजी ने कहा-"गांधी महोदय समुद्री जल को ...

खिलाफत आंदोलन 1919 और महात्मा गांधी

खिलाफत आंदोलन प्रारंभ करने के लिए गठित खिलाफत कमेटी  :  'शौकत अली, मुहम्मद अली, अबुल कलाम आजाद, हकीम अजमल खान, हसरत मोहानी तथा डॉ. अंसारी शामिल थे।   तथापि खिलाफत आंदोलन प्रारंभ करने का श्रेय मुख्यतः अली बंधुओ-शाकत अला एव मुहम्मद अली बंधुओं-शौकत अली एवं मुहम्मद अली को दिया जाता है।  कारण : - भारत के मुसलमान तुर्की के सुल्तान को इस्लामी साम्राज्य का खलीफा मानते थे। प्रथम विश्व युद्ध में तुर्की मित्र देशों के विरुद्ध लड़ रहा था।  युद्ध के समय ब्रिटिश राजनीतिज्ञों ने भारतीय मुसलमानों को वचन दिया था कि वे तुर्की साम्राज्य को किसी प्रकार समाप्त नहीं होने देंगे, लेकिन युद्ध समाप्त होने के बाद ब्रिटिश सरकार ने तुर्की साम्राज्य का विघटन कर दिया। भारतीय मुसलमान ब्रिटिश साम्राज्य से नफरत करने लगे और उन्होंने तुर्की के ऑटोमन साम्राज्य की रक्षा और खलीफा को बनाए रखने के लिए आंदोलन प्रारंभ किया। तर्की साम्राज्य के विभाजन के विरुद्ध शुरू हुए। खिलाफत आंदोलन ने उस समय अधिक जोर पकड़ लिया जब इसमें गांधीजी सम्मिलित हुए। अंग्रेजों द्वारा ती साम्राज्य क...

असहयोग आंदोलन 1920 और महात्मा गांधी

महात्मा गांधी और असहयोग आंदोलन :  सितंबर, 1920 में कलकत्ता में संपन्न भारतीय राष्ट्रायक विशेष अधिवेशन में महात्मा गांधी ने असहयोग के प्रस्ताव का था जिसका सी.आर. दास ने विरोध किया था।   दिसंबर, 1920 में नागपुर में संपन्न कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में असहयोग प्रस्ताव पर व्यापक चर्चा हुई तथा इसका अनुसमर्थन किया गया।  नागपूर अधिवेशन में असहयोग प्रस्ताव सी.आर. दास ने ही प्रस्तावित किया था। गांधीजी द्वारा असहयोग आंदोलन 1 अगस्त, 1920 को प्रारंभ किया गया। पश्चिमी भारत, बंगाल तथा उत्तरी भारत में असहयोग आंदोलन को अभूतपूर्व सफलता मिली।" असहयोग आंदोलन के दौरान ही मोतीलाल नेहरू, लाला लाजपत राय, सरदार वल्लभभाई पटेल, जवाहरलाल नेहरू तथा राजेंद्र प्रसाद न्यायालय का बहिष्कार कर आंदोलन में कूद पड़े थे।  5 नवंबर, 1920 को ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के अधिवेशन में गांधीजी ने असहयोग आंदोलन शुरू होने के 'एक वर्ष के भीतर स्वराज' प्राप्त करने का नारा दिया। इसके साथ ही सरकारी उपाधि, स्कूल न्यायालयों तथा विदेशी समानों का पूर्णतः बहिष्कार की योजना भी थी।  असहयो...

स्वराज पार्टी का गठन 1923

स्वराज पार्टी की स्थापना और उद्देश्य :  1919 के भारतीय शासन अधिनियम द्वारा स्थापित केंद्रीय तथा प्रांतीय विधानमंडलों का कांग्रेस ने गांधीजी के निर्देशानुसार बहिष्कार किया था और 1920 के चुनावों में भाग नहीं लिया। असहयोग आंदोलन का समाप्ति और गांधीजी की गिरफ्तारी के बाद देश के वातावरण में एक अजीब निराशा का माहौल बन गया था।   ऐसी स्थिति में मोतीलाल नेहरू तथा सी.आर. दास ने एक नई विचारधारा को जन्म दिया। मोतीलाल नेहरू तथा सी.आर. दास ने कांग्रेस को विधानमंडलों के भीतर प्रवेश कर अंदर से लड़ाई लड़ने का विचार प्रस्तुत किया तथा 1923 के चुनावों के माध्यम से विधानमंडल में पहुंचने की योजना बनाई। किंतु 1922 में कांग्रेस के गया अधिवेशन में बहुमत के साथ इस योजना को अस्वीकार कर दिया गया।   सी.आर. दास  (इस दौरान वे कांग्रेस के अध्यक्ष थे) ने कांग्रेस की अध्यक्षता से त्याग-पत्र दे दिया और मार्च, 1923 में मोतीलाल नेहरू के साथ मिलकर 'स्वराज पार्टी की स्थापना की।   इस पार्टी का मुख्य उद्देश्य चुनावों के माध्यम से काउंसिलों में प्रवेश कर तथा उन्...

मुस्लिम लीग का गठन (1906)

मुस्लिम लीग का गठन (1906) :  अक्टूबर, 1906 में आगा खां के नेतृत्व में मुस्लिमों के शिमला प्रतिनिधिमंडल ने एक ऐसी केंद्रीय मुस्लिम सभा बनाने का विचार किया जिसका उद्देश्य मुसलमानों के हितों का संरक्षण हो।   इसी विचारण के अनुरूप ढाका में संपन्न अखिल भारतीय मुस्लिम शैक्षिक सम्मेलन (All India Mohammadan Educational Conference) के दौरान दिसंबर, 1906 में इस सम्मेलन के स्वागत समिति के अध्यक्ष तथा राजनीतिक बैठकों के संयोजक ढाका के नवाब सलीमुल्लाह खान ने अखिल भारतीय मुस्लिम लीग के गठन का प्रस्ताव किया।  56 सदस्यीय अस्थायी समिति का चयन किया गया और मोहसिन-उल-मुल्क तथा वकार-उल-मुल्क को संयुक्त रूप से संगठन का सचिव नियुक्त किया गया। लखनऊ में मुस्लिम लीग का मुख्यालय बनाया गया और आगा खां इसके प्रथम अध्यक्ष बनाए गए। इस संगठन के तीन उद्देश्य थे - (1) ब्रिटिश सरकार के प्रति मुसलमानों में निष्ठा बढ़ाना, (2) लीग के अन्य उद्देश्यों को बिना दुष्प्रभावित किए अन्य संप्रदायों के प्रति कटुता की भावना को बढ़ने से रोकना, (3) मुसलमानों के राजनीतिक अधिकारों की रक्षा और उनका ...

बंगाल विभाजन 1905 तथा स्वदेशी आंदोलन :

बंगाल विभाजन 1905 तथा स्वदेशी आंदोलन :  ब्रिटिश सरकार ने 20 जुलाई, 1905 को बंगाल विभाजन के निर्णय की घोषणा कर दी। 7 अगस्त, 1905 को कलकत्ता के टाउन हॉल में एक ऐतिहासिक बैठक में स्वदेशी आंदोलन की विधिवत घोषणा कर दी गई। इसमें ऐतिहासिक बहिष्कार प्रस्ताव पारित हुआ। इसी के बाद से बगाल का विभिन्न क्षेत्रों में बंग-भंग विरोधी आंदोलन औपचारिक रूप से एकजुट होकर प्रारंभ हो गया।   16 अक्टूबर, 1905 को बंगाल विभाजन प्रभावी हो गया। इस दिन पूरे बंगाल में 'शोक दिवस' के रूप में मनाया गया।  रबींद्रनाथ टैगोर के सुझाव पर संपूर्ण बंगाल में इस दिन को ‘राखी दिवस' के रूप में मनाया गया।     विभाजन के बाद बंगाल, पूर्वी और पश्चिमी बंगाल में बंट गया। पूर्वी बंगाल और असम को मिलाकर एक नया प्रांत बनाया गया जिसमें- राजशाही, चटगांव, ढाका आदि सम्मिलित थे। इस प्रांत का मुख्यालय ढा का में था।  विभाजन के दूसरे भाग में पश्चिमी बंगाल, उड़ीसा और बिहार शामिल थे।  बंगाल का विभाजन लॉर्ड कर्जन (1899-1905 ई.) के काल में 1905 में किया गया था।  सर एन्ड्रज हेंडरसन लीथ ...