स्वराज पार्टी का गठन 1923
स्वराज पार्टी की स्थापना और उद्देश्य :
1919 के भारतीय शासन अधिनियम द्वारा स्थापित केंद्रीय तथा प्रांतीय विधानमंडलों का कांग्रेस ने गांधीजी के निर्देशानुसार बहिष्कार किया था और 1920 के चुनावों में भाग नहीं लिया। असहयोग आंदोलन का
समाप्ति और गांधीजी की गिरफ्तारी के बाद देश के वातावरण में एक अजीब निराशा का माहौल बन गया था।
ऐसी स्थिति में मोतीलाल नेहरू तथा सी.आर. दास ने एक नई विचारधारा को जन्म दिया। मोतीलाल नेहरू तथा सी.आर. दास ने कांग्रेस को विधानमंडलों के भीतर प्रवेश कर अंदर से लड़ाई लड़ने का विचार प्रस्तुत किया तथा 1923 के चुनावों के माध्यम से विधानमंडल
में पहुंचने की योजना बनाई। किंतु 1922 में कांग्रेस के गया अधिवेशन में बहुमत के साथ इस योजना को अस्वीकार कर दिया गया।
सी.आर. दास (इस दौरान वे कांग्रेस के अध्यक्ष थे) ने कांग्रेस की अध्यक्षता से त्याग-पत्र दे दिया और मार्च, 1923 में मोतीलाल नेहरू के साथ मिलकर 'स्वराज पार्टी की स्थापना की।
इस पार्टी का मुख्य उद्देश्य चुनावों के माध्यम से
काउंसिलों में प्रवेश कर तथा उन्हें काम न करने देकर 1919 के भारत शासन अधिनियम का उच्छेदन करना था। सी.आर. दास स्वराज पार्टी के अध्यक्ष तथा मोतीलाल नेहरू इसके महासचिव थे।
श्रीनिवास आयंगर (मद्रास प्रांत स्वराज पार्टी के संस्थापक) तथा एन.सी. केलकर स्वराज दल के अन्य प्रमुख नेता थे।
1925 में विठ्ठलभाई पटेल का सेंट्रल लेजिस्लेटिव
(केंद्रीय विधान मंडल) असेम्बली का अध्यक्ष चुना जाना स्वराजियों की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी।
चितरंजन दास को 'देशबंधु' के नाम से जाना जाता
था। देशबंधु का तात्पर्य है- The Friend of Nation. चितरंजन दास इंग्लैंड से वकालत की पढ़ाई करने के बाद स्वदेश आकर बैरिस्टर हो गए तथा वकील के रूप में इनकी सबसे बड़ी सफलता अलीपुर बमकांड केस
में अरबिंद घोष का बचाव करना था।
इन्होंने कहा था-"स्वराज जनता के लिए होना चाहिए केवल वर्गों के लिए नहीं।"
16 दिसंबर 1922 को इंडिपेंडेंट पार्टी बनाने का निर्णय मदन मोहन मालवीय तथा मोतीलाल नेहरू ने लिया था।
मदन मोहन मालवीय हिंदू महासभा के संस्थापक सदस्य थे ।
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