असहयोग आंदोलन 1920 और महात्मा गांधी
महात्मा गांधी और असहयोग आंदोलन :
सितंबर, 1920 में कलकत्ता में संपन्न भारतीय राष्ट्रायक
विशेष अधिवेशन में महात्मा गांधी ने असहयोग के प्रस्ताव का था जिसका सी.आर. दास ने विरोध किया था।
दिसंबर, 1920 में नागपुर में संपन्न कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में असहयोग प्रस्ताव पर व्यापक चर्चा हुई तथा इसका अनुसमर्थन किया गया।
नागपूर अधिवेशन में असहयोग प्रस्ताव सी.आर. दास ने ही प्रस्तावित किया था। गांधीजी द्वारा असहयोग
आंदोलन 1 अगस्त, 1920 को प्रारंभ किया गया। पश्चिमी भारत, बंगाल तथा उत्तरी भारत में असहयोग आंदोलन को अभूतपूर्व सफलता मिली।" असहयोग आंदोलन के दौरान ही मोतीलाल नेहरू, लाला लाजपत राय, सरदार वल्लभभाई पटेल, जवाहरलाल नेहरू तथा राजेंद्र प्रसाद न्यायालय का बहिष्कार कर आंदोलन में कूद पड़े थे।
5 नवंबर, 1920 को ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के अधिवेशन में गांधीजी ने असहयोग आंदोलन शुरू होने के 'एक वर्ष के भीतर स्वराज' प्राप्त करने का नारा दिया। इसके साथ ही सरकारी उपाधि, स्कूल न्यायालयों तथा विदेशी समानों का पूर्णतः बहिष्कार की योजना भी थी।
असहयोग आंदोलन की अनेक सफलताएं हैं, इसी आंदोलन ने पहली बार देश की जनता को इकट्ठा किया। अब भा.रा. कांग्रेस पर कोई यह आरोप नहीं लगा सकता था कि वह कुछ मुट्ठी भर लोगों का प्रतिनिधित्व करती है।
इस आंदोलन की सबसे बड़ी विशेषता यह रही कि उसने जनता को आधुनिक राजनीति से परिचित कराया, उनमें आजादी की भूख जगाई। मालाबार की घटनाओं के बावजूद इस आंदोलन में बड़े पैमाने पर मुसलमानों की भागीदारी और सांप्रदायिक एकता आंदोलन की कोई छोटी उपलब्धि नहीं थी। साथ ही इस आंदोलन से जनता के मन से ब्रिटिश 'शक्ति' का भय हट गया।
जिस समय गांधीजी भारत आए (1915), उस समय प्रथम विश्व युद्ध चल रहा था। उन्होंने सरकार के युद्ध प्रयासों में मदद की, जिसके लिए सरकार ने उन्हें कैसर-ए-हिंद' सम्मान से सम्मानित किया, जिसे उन्होंने असहयोग आंदोलन में वापस कर दिया।
जमनालाल बजाज ने अपनी राय बहादुर' की उपाधि वापस कर दी।
बालगंगाधर तिलक ने असहयोग आंदोलन को समर्थन दिया, परंतु इस आंदोलन के प्रथम दिन 1 अगस्त, 1920 को उनकी मृत्यु हो जाने के कारण वह इसका परिणाम नहीं देख सके।
- चौरी-चौरा कांड की वास्तविक तिथि 5 फरवरी, 1922 है। इस तिथि को संयुक्त प्रांत के गोरखपुर जिले में चौरी- चौरा नामक स्थान पर किसानों के एक जुलूस पर गोली चलाए जाने के कारण क्रुद्ध भीड़ ने थाने में आग लगा दी, जिससे 21 सिपाहियों की मृत्यु हो गई। यही घटना इतिहास में चौरी-चौरा कांड के नाम से प्रसिद्ध है ।
चौरी-चौरा कांड से क्षुब्ध होकर महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया।
12 फरवरी, 1922 को बारदोली में हुई कांग्रेस की बैठक में आंदोलन को स्थगित करने का निर्णय लिया गया। इस घटना के समय गांधीजी गुजरात के बारदोली में सामूहिक सत्याग्रह द्वारा सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ करने की तैयारी कर रहे थे। 24 फरवरी, 1922 को
आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की दिल्ली में बैठक हुई, जिसमें ऐसी सभी गतिविधियों पर रोक लगा दी गई, जिनसे कानून का उल्लंघन होता है।
इसी अधिवेशन में असहयोग आंदोलन वापस लेने के कारण डॉ. मुंजे के द्वारा गांधीजी के खिलाफ निंदा प्रस्ताव लाया गया।
- रबींद्रनाथ टैगोर आंदोलन एवं विरोध प्रदर्शन के विपरीत रचनात्मक कार्यक्रम को विशेष महत्व प्रदान करते थे जिसके कारण उन्होंने विदेशी वस्त्रों की होली जलाने के विपरीत गांधीजी को रचनात्मक कार्यक्रम
अपनाने की बात अपने पत्र में कही। असहयोग आंदोलन के दौरान रबींद्रनाथ टैगोर ने विदेशी वस्त्रों को जलाए जाने को 'अविवेकी या निष्ठर बर्बादी' कहा था।
- असहयोग आंदोलन (1920-22) के दौरान काशी विद्यापीठ बनारस में 1920 में, गुजरात विद्यापीठ अहमदाबाद में 1920 में तथा जामिया मिलिया इस्लामिया अलीगढ़ में 1920 में, जो बाद में दिल्ली ले जाया गया, स्थापित हुए।
मदन मोहन मालवीय ने 1916 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की थी और 1919 से 1938 तक वे इसके कुलपति बने रहे।
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