सामाजिक धार्मिक सुधार आंदोलन : ब्रह्म समाज, प्रार्थना समाज, आर्य समाज, रामकृष्ण मिशन


सामाजिक धार्मिक सुधार आंदोलन : ब्रह्म समाज, प्रार्थना समाज, आर्य समाज, रामकृष्ण मिशन : 


"19वीं शताब्दी में भारत में अनेक नवजागरण वादी विचारों
 का प्रभाव बढ़ रहा था। इस प्रभाव ने अनेक सामाजिक तथा धार्मिक सुधार आन्दोलनों को जन्म दिया। आगे चलकर इन सामाजिक एवं धार्मिक सुधार आन्दोलनों ने भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में  महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया।"


सामाजिक एवं धार्मिक सुधार
आन्दोलनों की प्रकृति : 


भारत के सामाजिक तथा धार्मिक सुधार आन्दोलन यूरोपीय पुनर्जागरण से पृथक् थे। यूरोपीय पुनर्जागरण का जोर जहाँ साहित्य तथा कला पर था, वहीं भारतीय पुनर्जागरण का महत्त्वपूर्ण सरोकार सामाजिक और राष्ट्रीय था, किन्तु इसमें धार्मिक प्रवृत्तियाँ भी अंशतः मौजूद थीं।

सुधार आन्दोलन के कारण : 

• मुगल शासन के पतन से भारत की राजनीतिक
एकता विनष्ट हो गई तथा क्षेत्रीय शक्तियों का
उदय हुआ। केन्द्रीकृत सत्ता के कमजोर होने पर
भारत में औपनिवेशिक शक्ति का उत्थान हुआ।
भारत पर अंग्रेजो का प्रभुत्व बढ़ने के साथ
आर्थिक शोषण की प्रवत्तियों में तेजी आई।

• 1813 ई. में ईसाई पादरियों का भारत में आगमन
हुआ। इन धर्म-प्रचारकों ने सामाजिक कुरीतियों
पर प्रहार कर हिन्दू तथा इस्लाम धर्मों की मूल
प्रवृत्ति पर चोट की। धर्मान्तरण की प्रवृत्ति में वृद्धि
हुई, जिसकी प्रतिक्रिया भारतीय समाज पर देखने
को मिली।

• पश्चिम के वैज्ञानिक ज्ञान, बुद्धिवाद एवं
मानवतावाद के सिद्धान्तों का भारतीय जनता पर
प्रभाव पड़ा। आधुनिक चेतना के साथ कई
सामाजिक वर्ग-पूँजीवाद, श्रमजीवी तथा
आधुनिक बुद्धिजीवी वर्ग सामने आए।


सामाजिक तथा धार्मिक सुधार संस्थाएँ :


19वीं शताब्दी में भारतीय राष्ट्रवादी नेताओं तथा
विचारकों द्वारा स्थापित सामाजिक सुधार संस्थाओं ने
महत्त्वपूर्ण कार्य किए, जिसका प्रभाव भारतीय समाज
तथा धार्मिक प्रवृत्तियों पर पड़ा।
ऐसी संस्थाओं का विस्तृत विवरण निम्नलिखित है


ब्रह्म समाज :


• 20 अगस्त, 1828 को राजा राममोहन राय ने ब्रह्म
समाज की स्थापना कलकत्ता (कोलकाता) में की।

• राजा राममोहन राय अरबी, फारसी, संस्कृत के अतिरिक्त
अंग्रेजी, फ्रांसीसी, लैटिन, यूनानी तथा हिब्रू भाषाओं का
ज्ञान रखते थे। 

  • इन भाषाओं के ज्ञान से उन्होंने पाश्चात्य

दर्शन को आत्मसात् किया, जिसका प्रतिबिम्बन ब्रह्म
समाज के रूप में सामने आया। ब्रह्म समाज ने मूर्तिपूजा
का विरोध किया।

• एकेश्वरवाद का समर्थन करते हुए, ब्रह्म समाज ने
धर्मों की आपसी एकता का सिद्धान्त दिया।

• तीर्थ यात्रा तथा कर्मकाण्ड का विरोध किया तथा
धार्मिक ग्रन्थों की व्याख्या के लिए पुरोहित वर्ग को
अस्वीकार किया गया।

राजा राममोहन राय ने सती प्रथा के विरुद्ध ऐतिहासिक
आन्दोलन किया। इनके प्रयासों से ही 1829 ई. में सती
प्रथा निषेध कानून बनाया गया। 

उन्होंने डेविड हेयर के सहयोग से कलकत्ता में हिन्दू
कॉलेज की स्थापना की। 1825 ई. में उन्होंने कलकत्ता
में वेदान्त कॉलेज की स्थापना की।

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