बंगाल विभाजन 1905 तथा स्वदेशी आंदोलन :

बंगाल विभाजन 1905 तथा स्वदेशी आंदोलन : 


ब्रिटिश सरकार ने 20 जुलाई, 1905 को बंगाल विभाजन के निर्णय की घोषणा कर दी। 7 अगस्त, 1905 को कलकत्ता के टाउन हॉल में एक ऐतिहासिक बैठक में स्वदेशी आंदोलन की विधिवत घोषणा कर दी गई। इसमें ऐतिहासिक बहिष्कार प्रस्ताव पारित हुआ। इसी के बाद से बगाल का विभिन्न क्षेत्रों में बंग-भंग विरोधी आंदोलन औपचारिक रूप से एकजुट होकर
प्रारंभ हो गया। 

 16 अक्टूबर, 1905 को बंगाल विभाजन प्रभावी हो गया। इस दिन पूरे बंगाल में 'शोक दिवस' के रूप में मनाया गया।  रबींद्रनाथ टैगोर के सुझाव पर संपूर्ण बंगाल में इस दिन को ‘राखी दिवस' के रूप में
मनाया गया।  

विभाजन के बाद बंगाल, पूर्वी और पश्चिमी बंगाल में बंट गया। पूर्वी बंगाल और असम को मिलाकर एक नया प्रांत बनाया गया जिसमें- राजशाही, चटगांव, ढाका आदि सम्मिलित थे। इस प्रांत का मुख्यालयढा का में था।  विभाजन के दूसरे भाग में पश्चिमी बंगाल, उड़ीसा और बिहार शामिल थे। 

बंगाल का विभाजन लॉर्ड कर्जन (1899-1905 ई.) के काल में 1905 में किया गया था। 

सर एन्ड्रज हेंडरसन लीथ फ्रेजर भारतीय सिविल सेवा के अधिकारी थे। इन्होंने वर्ष 1903 से 1908 तक बंगाल के लेफ्टिनेंट गवर्नर के रूप में अपनी सेवाएं दी थीं। 

 रबींद्रनाथ टैगोर 'स्वदेशी' आंदोलन के आलोचक थे तथा पूर्व (East) एवं पाश्चात्य (West) सभ्यता के मध्य एक बेहतर समन्वय संबंध के समर्थक थे। 
उनका मानना था कि पश्चिम ने पूर्व को समझने में गलती की है और यह दोनों के बीच असामंजस्य का मूल कारण है, परंतु इसका यह अर्थ नहीं कि पूर्व भी पश्चिम को समझने में गलती करे। 

बंगाल विभाजन के प्रस्ताव के विरोध में बांग्ला। पत्रिका 'संजीवनी' के संपादक कृष्ण कुमार मित्र ने अपनी पत्रिका के 13 जुलाई, 1905 के अंक में सर्वप्रथम सुझाव दिया था कि लोगों को सारे ब्रिटिश माल का बहिष्कार करना चाहिए, शोक मनाना चाहिए तथा सरकारी अधिकारियों एवं सरकारी संस्थाओं से सभी संपर्क तोड़ लेने चाहिए। उनके इस सुझाव
का समर्थन बागेरहाट (जिला-खुलना) की 16 जुलाई, 1905 की जनसभा द्वारा किया गया। 


ऊपरी तौर पर यद्यपि ब्रिटिश सरकार ने बंगाल विभाजन का उद्देश्य प्रशासनिक सुविधा बताया था परंतु वास्तव में यह मुख्यतः बंगाली राष्ट्रवाद की वृद्धि को दुर्बल करने के लिए किया गया था। तत्कालीन वायसराय लॉर्ड कर्जन के अनुसार, "अंग्रेजी हुकूमत का यह प्रयास कलकत्ता को सिंहासनाच्युत करना तथा बंगाली आबादी का बंटवारा करना था, एक ऐसे केंद्र को समाप्त करना था, जहां से बंगाल एवं पूरे देश में कांग्रेस पार्टी का संचालन होता था और साजिशें रची जाती थीं।"

 स्वदेशी आंदोलन के प्रारंभ का तात्कालिक कारण बंगाल विभाजन था। इस अवधारणा के मुख्य प्रस्तुतकर्ता अरबिंद घोष, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक बिपिन चंद्र पाल तथा लाला लाजपत राय थे। ये लोग स्वदेशी आंदोलन को पूरे देश में लागू करना चाहते थे किंतु उदारवादी गुट इसके विरुद्ध था। 

बंगाल से प्रारंभ हुए स्वदेशी आंदोलन का लोकमान्य तिलक ने सारे देश - विशेषकर बंबई और पुणे में, 
अजीत सिंह और लाला लाजपत राय ने पंजाब एवं उत्तर प्रदेश में,
 सैयद हैदर रजा ने दिल्ली में तथा चिदंबरम पिल्लै ने
- मद्रास प्रेसीडेंसी में नेतृत्व किया था। 


स्वदेशी आंदोलन के समय जन समर्थन एकत्र करने के उद्देश्य से अश्विनी कुमार दत्त ने 'स्वदेश बांधव समिति' की स्थापना की।

 इस आंदोलन की सबसे बड़ी  विशेषता थी महिलाओं का इसमें सक्रिय रूप से भाग लेना।  किंतु किसान एवं बहुसंख्य मुस्लिम समुदाय स्वदेशी एवं बहिष्कार आंदोलन से अलग रहे। 


स्वदेशी आंदोलन के दौरान 'वंदे मातरम' भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का शीर्षक गीत बना। 

ब्रिटिश पत्रकार एच.डब्ल्यू. नेविन्सन स्वदेशी आंदोलन से जुड़े थे।  इन्होंने चार महीने तक भारत में रहकर मानचेस्टर गार्जियन, ग्लास्गो हेराल्ड तथा डेली क्रॉनिकल के लिए रिपोर्टिंग की थी।  बाद में इन्होंने इस रिपोर्ट को 'द न्यू स्पिरिट इन इंडिया' नाम से पुस्तक के रूप में संपादित किया था।


 राष्ट्रीय आंदोलन के बढ़ते प्रभाव के वातावरण में अवनींद्रनाथ टैगोर ने वर्ष 1907 में अपने बड़े भाई गगनेंद्रनाथ के साथ मिलकर 'इंडियन सोसाइटी ऑफ ओरिएंटल आर्ट' की स्थापना की, जिसके द्वारा प्राच्य कला-मूल्यों का पुनर्जीवन एवं आधुनिक भारतीय कला में नई  चेतना जागृत हुई। 



दिसंबर, 1911 में ब्रिटिश सम्राट जॉर्ज पंचम और
महारानी मेरी के भारत आगमन पर उनके स्वागत हेतु दिल्ली में एक दरबार का आयोजन किया गया।  

दिल्ली दरबार में ही 12 दिसंबर, 1911 को सम्राट ने बंगाल विभाजन को रद्द घोषित किया, साथ ही कलकत्ता की जगह दिल्ली को भारत की नई राजधानी बनाए जाने की घोषणा की। 

घोषणा के अनुरूप बंगाल को एक नए प्रांत के रूप में पुनर्गठित किया गया। उड़ीसा तथा बिहार (1912 में अलग प्रांत का दर्जा) को इससे अलग कर दिया गया। असम को एक नया प्रांत बनाया गया, जैसा कि उसकी स्थिति 1874 तथा सिलहट को इसमें जोड़ दिया गया।

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