मुस्लिम लीग का गठन (1906)
मुस्लिम लीग का गठन (1906) :
अक्टूबर, 1906 में आगा खां के नेतृत्व में मुस्लिमों के शिमला प्रतिनिधिमंडल ने एक ऐसी केंद्रीय मुस्लिम सभा बनाने का विचार किया जिसका उद्देश्य मुसलमानों के हितों का संरक्षण हो।
इसी विचारण के अनुरूप ढाका में संपन्न अखिल भारतीय मुस्लिम शैक्षिक सम्मेलन (All India Mohammadan Educational Conference) के दौरान दिसंबर, 1906 में इस सम्मेलन के स्वागत समिति के अध्यक्ष तथा राजनीतिक बैठकों के संयोजक ढाका के नवाब सलीमुल्लाह खान ने अखिल भारतीय मुस्लिम लीग के गठन का प्रस्ताव किया।
56 सदस्यीय अस्थायी समिति का चयन किया गया और मोहसिन-उल-मुल्क तथा वकार-उल-मुल्क को संयुक्त रूप से संगठन का सचिव नियुक्त किया गया। लखनऊ में मुस्लिम लीग का मुख्यालय बनाया गया और आगा खां इसके प्रथम अध्यक्ष बनाए गए।
इस संगठन के तीन उद्देश्य थे- (1) ब्रिटिश सरकार के प्रति मुसलमानों में निष्ठा बढ़ाना, (2) लीग के अन्य उद्देश्यों को बिना दुष्प्रभावित किए अन्य संप्रदायों के प्रति कटुता की भावना को बढ़ने से रोकना, (3) मुसलमानों के राजनीतिक अधिकारों की रक्षा और उनका विस्तार करना।
वर्ष 1907 में मुस्लिम लीग का वार्षिक अधिवेशन राची में तथा वर्ष 1908 में अमृतसर में हुआ था। इसी अधिवेशन में मुसलमानों के लिए पथक निर्वाचक मण्डल
की गई, जो इन्हें 1909 के मार्ले-मिण्टों सुधारों के द्वारा प्रदान कर दिया गया।
वर्ष 1908 में लंदन में इसकी एक शाखा सैयद अमीर अली ने स्थापित की थी। अहरार आंदोलन वर्ष 1906 में शुरू किया गया। इसके नेताओं में-मुहम्मद अली, हकीम अजमल खां, हसन इमाम, नजरुल हक तथा मौलाना जफर अली खां सम्मिलित थे। इन नेताओं का मानना था कि मुसलमानों को अब ब्रिटिश सरकार की चाटुकारिता नहीं करनी चाहिए। बल्कि उन्हें राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेना चाहिए।
1 अक्टूबर, 1906 को आगम खां के नेतृत्व में मुसलमानों का एक शिष्टमंडल तत्कालीन वायसराय लॉर्ड मिंटो से शिमला में मिला। शिष्टमंडल ने प्रांतीय,
केंद्रीय एवं स्थानीय निकायों में निर्वाचन हेतु मुसलमानों के लिए विशिष्ट स्थिति की मांग की।
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