खिलाफत आंदोलन 1919 और महात्मा गांधी

खिलाफत आंदोलन प्रारंभ करने के लिए गठित खिलाफत कमेटी  :

 'शौकत अली, मुहम्मद अली, अबुल कलाम आजाद, हकीम अजमल खान, हसरत मोहानी तथा डॉ. अंसारी शामिल थे। 

 तथापि खिलाफत आंदोलन प्रारंभ करने का श्रेय मुख्यतः अली बंधुओ-शाकत अला एव मुहम्मद
अली बंधुओं-शौकत अली एवं मुहम्मद अली को
दिया जाता है। 

कारण : -
भारत के मुसलमान तुर्की के सुल्तान को इस्लामी साम्राज्य का खलीफा मानते थे। प्रथम विश्व युद्ध में तुर्की मित्र देशों के विरुद्ध लड़ रहा था।  युद्ध के समय ब्रिटिश राजनीतिज्ञों ने भारतीय मुसलमानों को वचन दिया था कि वे तुर्की साम्राज्य को किसी प्रकार समाप्त नहीं होने देंगे, लेकिन युद्ध समाप्त होने के बाद ब्रिटिश सरकार ने तुर्की साम्राज्य का विघटन कर दिया।

भारतीय मुसलमान ब्रिटिश साम्राज्य से नफरत करने लगे और उन्होंने तुर्की के ऑटोमन साम्राज्य की रक्षा और खलीफा को बनाए रखने के लिए आंदोलन प्रारंभ किया। तर्की साम्राज्य के विभाजन के विरुद्ध शुरू हुए।
खिलाफत आंदोलन ने उस समय अधिक जोर पकड़ लिया जब इसमें गांधीजी सम्मिलित हुए। अंग्रेजों द्वारा ती साम्राज्य का विभाजन करने के विरुद्ध खिलाफत आंदोलन प्रारंभ हुआ। 

 दिल्ली में 23 नवंबर, 1919 को खिलाफत कमेटी के सम्मेलन की अध्यक्षता महात्मा गांधी को प्रदान की गई।  दिसंबर, 1919 में हुए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अमृतसर निवेशन से खिलाफत आंदोलन को और अधिक बढ़ावा मिला। गांधीजी ने टंट-मस्लिम एकता के एक ऐसे स्वर्णिम अवसर के रूप में देखा, जो आगे सौ वर्षों में भी नहीं प्राप्त हो सकता। तदनुसार उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध आंदोलन में भारतीय मुसलमानों का सहयोग प्राप्त करने के लिए खिलाफत आंदोलन का समर्थन किया। 

हकीम अजमल खां ने खिलाफत आंदोलन के दौरान हाज़िक-उल-मुल्क (Haziq-ul-Mulk) की पदवी त्याग दी थी। यह पदवी ब्रिटिश सरकार द्वारा वर्ष 1908 में उन्हें प्रदान की गई थी। 

मुहम्मद अली जिन्ना (जब वे राष्ट्रवादी थे) खिलाफत आंदोलन को देश की स्वतंत्रता के आंदोलन से जोड़ने के विरोधी थे। उन्होंने गांधीजी को राजनीति में धर्म को न लाने की सलाह दी थी। उन्होंने खिलाफत आंदोलन
में गांधीजी की भागीदारी के विरुद्ध गांधीजी को सावधान किया था कि वे मुस्लिम धार्मिक नेताओं एवं उनके अनुयायियों के कट्टरपन को प्रोत्साहित न करे। 

मौलाना मुहम्मद अली, शौकत अली, अबुल कलाम आजाद, हकीम अजमल खां और हसरत मोहानी खिलाफत आंदोलन में गांधीजी के प्रमुख सहयोगी थे। 

सितंबर, 1920 में कलकत्ता में हुए कांग्रेस के अधिवेशन का प्रमुख मुद्दा जलियांवाला बाग कांड और खिलाफत आंदोलन था। 

 खिलाफत आदोलन में मदन मोहन मालवीय सम्मिलित नहीं हुए थे तथा उन्होंने इस आंदोलन में काग्रेस की भागीदारी का विरोध किया था।

 सितंबर, 1919 में अखिल भारतीय 
खिलाफत कमेटी का गठन किया गया था।

इस प्रकार खिलाफत आंदोलन में महात्मा गाँधी जी का महत्वपूर्ण योगदान था । 


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