साइमन कमीशन
साइमन कमीशन, 1927-28 ई. :
1919 ई. के भारत शासन अधिनियम में कहा गया था कि अधिनियम के पारित होने के दस वर्ष बाद एक संवैधानिक आयोग की नियुक्ति की जाएगी, जो इसका प्रगति की जाँच करेगा। सर जॉन साइमन की अध्यक्षता में गठित साइमन आयोग में कुल सात सदस्य क्लाइमेण्ट एटली, हेनरी लेवी लासन, एडवर्ड काडोगान, वेर्नोन हार्टशोर्न, जॉर्ज लेन फाक्स, डोनाल्ड हावर्ड आयोग के सदस्य थे, चूंकि इसके सभी सदस्य अंग्रेज थे, इसलिए
कांग्रेसियों ने इसे श्वेत कमीशन कहा। 11 दिसम्बर, 1927 को इलाहाबाद में हुए एक सवदलीय सम्मेलन में आयोग में एक भी भारतीय सदस्य को न नियुक्त किए जाने के कारण इसके बहिष्कार का निर्णय लिया गया।
साइमन कमीशन का विरोध :
•8 नवम्बर, 1927 को साइमन कमीशन की नियक्ति की घोषणा की गई थी। साइमन कमीशन की भारत में तीव्र प्रतिक्रिया हुई, उसमें एक भी भारतीय की नियुक्ति नहीं की गई थी। 27 दिसम्बर, 1927 को मद्रास में हुए कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन, जिसकी अध्यक्षता एम ए अन्सारी ने की थी, में साइमन कमीशन के पूर्ण बहिष्कार का निर्णय लिया गया। आयोग जहाँ गया वहाँ साइमन गो बैक के नारे लगाए गए। 3 फरवरी, 1928 को साइमन कमीशन (बम्बई) भारत पहुंचा।
• लाहौर में बीमारी की हालत में भी लाला लाजपत राय आयोग का विरोध करने वाली एक भीड़ का नेतृत्व कर रहे थे। पुलिस ने इन्हें इतने बर्बर तरीके से पीटा कि कुछ ही दिनों बाद लालाजी की मृत्यु हो गई।
मरने से पूर्व लाला लाजपत राय का यह कथन ऐतिहासिक सिद्ध हुआ कि "मेरे ऊपर जो लाठी का प्रहार किया गया है, वही एक दिन ब्रिटिश साम्राज्य के ताबूत ।
की आखिरी कील साबित होगी "।
• तत्कालीन राजनीतिक दलों में लिबरल फेडरेशन (तेजबहादुर सपू), भारतीय
औद्योगिक वाणिज्यिक कांग्रेस, हिन्दू महासभा, किसान मजदूर पार्टी,
मस्लिम लीग आदि ने आयोग के बहिष्कार का समर्थन किया। मुस्लिम लीग
का महम्मद शफी गुट, जस्टिस पार्टी (मद्रास) यूनियनिस्ट पार्टी (पंजाब),
डॉ. बी आर अम्बेडकर के नेतृत्व में संचालित डिप्रेस्ड क्लास एसोसिएशन
और हरिजनों के कुछ संगठनों ने साइमन कमीशन का समर्थन किया।
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