ब्रह्म समाज और राजा राममोहनराय #

ब्रह्म समाज और राजा राममोहनराय : 


• 20 अगस्त, 1828 को राजा राममोहन राय ने ब्रह्म
समाज की स्थापना कलकत्ता (कोलकाता) में की।


राजा राममोहन राय अरबी, फारसी, संस्कृत के अतिरिक्त
अंग्रेजी, फ्रांसीसी. लैटिन, यूनानी तथा हिब्रू भाषाओं का
ज्ञान रखते थे। इन भाषाओं के ज्ञान से उन्होंने पाश्चात्य
दर्शन को आत्मसात् किया, जिसका प्रतिबिम्बन ब्रह्म
समाज के रूप में सामने आया। ब्रह्म समाज ने मूर्तिपूजा
का विरोध किया।


• एकेश्वरवाद का समर्थन करते हुए, ब्रह्म समाज ने
धों की आपसी एकता का सिद्धान्त दिया।


तीर्थ यात्रा तथा कर्मकाण्ड का विरोध किया तथा
धार्मिक ग्रन्थों की व्याख्या के लिए पुरोहित वर्ग को
अस्वीकार किया गया।

• राजा राममोहन राय ने सती प्रथा के विरुद्ध ऐतिहासिक
आन्दोलन किया। इनके प्रयासों से ही 1829 ई. में सती
प्रथा निषेध कानून बनाया गया 

• उन्होंने डेविड हेयर के सहयोग से कलकत्ता में हिन्द
कॉलेज की स्थापना की। 1825 ई. में उन्होंने कलकत्ता
में वेदान्त कॉलेज की स्थापना की।

राजा राममोहन राय के बाद देवेन्द्रनाथ टैगोर ने 1843 ई. में ब्रह्म समाज को नेतृत्व प्रदान किया। उन्होंने 1839 ई. में 'तत्त्वबोधिनी सभा' की स्थापना की। तत्त्वबोधिनी सभा तथा तत्त्वबोधिनी पत्रिका ने भारत के अतीत के सुव्यवस्थित अध्ययन को प्रोत्साहित किया।

'ब्रह्म समाज' की शाखाएँ संयुक्त प्रान्त, पंजाब तथा मद्रास में खोली गईं। ब्रह्म समाज के विचारों को लेकर 1865 ई. में केशवचन्द्र सेन तथा देवेन्द्रनाथ टैगोर में विवाद हुआ, जिसके बाद केशवचन्द्र सेन मल ब्रह्म समाज से अलग हो गए तथा आदि ब्रह्म समाज का गठन किया।


केशवचन्द्र सेन ने टेबरनेकल ऑफ न्यू डिस्पेंसेशन (1968) एवं इण्डियन रिफॉर्म एसोसिएशन (1870) की स्थापना भी की। इन्होंने 1872 ई. में ब्रह्म विवाह अधिनियम का कानूनी रूप देने के लिए राजी किया। 1878 ई. में आचार्य केशवचन्द्र सेन ने अपनी
अल्पायु पुत्री का विवाह कूच विहार के राजा से कर दिया. जोकि ब्रह्म विवाह अधिनियम, 1872 का उल्लंघन था। अत: भारतीय ब्रह्म समाज में उनके प्रति असन्तोष पनपने लगा।

फलस्वरूप केशवचन्द्र सेन के अनुयायियों ने भारतीय ब्रह्म समाज से पृथक् होकर साधारण ब्रह्म समाज का गठन किया।

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